"पता भी कैसे हो भला आखिर सत्ता के लालच की गाथा का सौर्य गान भर गया जा सकता है न धर्म का क्या गायन होगा? टी आर पि जैसी कोई चीज तो तब भी थी न?"
सोने की लंका जली ये तो सब जानते है, रोज जलती है... नया क्या है? लेकिन राम
राज आया था इसके प्रमाण कहीं नहीं मिलते| गजब है विभीषण को लंका मिल गयी, सुग्रीव
को किष्किन्धा और हनुमान को? अरे भाई सारे उतापे माफ़ जाओ ऐश करो... सीता मिली कसम
खाई, तजि गयीं, फिर मिली लक्ष्मण रेखा में कैद हुईं फिर तजि फिर गयीं, फिर मिलीं मिली
अग्नि परीक्षा हुई और फिर तजि गयीं और उत्तराधिकारी की लालच में फिर अश्वमेघ हुए! मगर
कब तक... अरे भई, कुल देवी, सावित्री, लक्ष्मी बना तो दिया, नारी होकर अब क्या
किरदार भला?
भोग विलास के पाश में इन्द्र्पस्त जुवे में हार कर! अपने गुरुओं, परिजनों,
पितामहों को छल कपट से मार कर! पांडव जीत गए महाभारत! फिर? वेदव्यास की स्याही खत्म!
पता नहीं... कोई प्रमाण नहीं की धर्म स्थापित हुआ भी था की नहीं! पता भी कैसे हो
भला आखिर सत्ता के लालच की गाथा का सौर्य गान भर गया जा सकता है न धर्म का क्या
गायन होगा? टी आर पि जैसी कोई चीज तो तब भी थी न?
प्रह्लाद ने पिता को मरवा दिया कहानी ख़त्म, काली ने महिसासुर को मारा कहानी
ख़त्म, पांडवों ने पंडू वंश का संहार किया और महाभारत ख़त्म और फिर लव कुश ने पिता की
सत्ता संभाल ली, ये लो ये कहानी यानि रामायण भी ख़त्म! जैसे कोई बालीवुड की सिनेमा
हो अंत में हप्पी एंडिंग| बाक्स आफिस का तर्रोताज़ा माल...
काश विष्णु के पच्चीसवें अवतार के साथ भी यही होता की इलेक्शन जीतते ही कहानी
ख़त्म... लेकिन ये क्या हो गया? इसके राज में भी सब कुछ वैसा ही है! बस कभी कभार
हिंदी भाषा बोल वाहवाही लूट लेते है, कभी नौका जहाज में जा के... कभी अंतरिछ यान
को निहार लेते हैं और इतराते ऐसे है जैसे ये सब इन्हीं के आदेश से हुआ है| जीतनी
लंकाय जलाई हैं उतने किलो अनाज तक न पंहुचा पाए गरीबो तक, ऊपर से बात मानते है तो
बस धोबी की.... कलजुग के हर हर गान में, इस नए तरकश कमान में सब कुछ जाली है, दीदे
फाड़ के निहार लो गरीबो की झोली अब भी खाली है| समझे? बुड़बक!
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