"अगर बलत्कार की घटनाओं को अख़बार में पढ़कर आपकी रूह कांप उठती है तो सोचिये आप इसे रोकने के लिए क्या करना चाहते हैं? और कीजिये जो भी कर सकते हैं"
"धमकाने, डराने और हरा देने की मंशा से गाली दी जाती है| डर जाने, हार जाने और बेइज्जत हो जाने की टीस
में गाली दी जाती है| हंसी मज़ाक के दौरान, किसी को चिढ़ाने के लिए और जुबानी-जंग जीतने के
लिए भी गाली दी जाती है| ये हिंसा अक्सर पुरुषों के दरमियाँ
होती है, लेकिन गालियां हमेशा महिलाओं के
प्रति होती हैं| माँ, बहन, बेटी, पत्नी, कुनबे की महिलाओं को सूचित करते हुए
ही गाली दी जाती है| महिलाएं भी गालियों में महिलाओं को
ही इंगित करती हैं|
इंसान ने ये कब सीखा होगी की औरत को सिर्फ
सम्भोग की वस्तु के अतिरिक्त कुछ भी नहीं समझा जाए? औरतों ने भी ये कब से मान लिया होगा की उनका अस्तित्व सिर्फ उपयोग भर
हो जाने के लिए ही हुआ है| गालियों
का इनता प्रचिलित उपयोग तो महिलाओं को और किसी लायक छोड़ता ही नहीं है| क्यूंकि जब कोई भी महिला या पुरुष “गाली” का
उपयोग करता या करती है तो वास्तव में वो किसी महिला का शाब्दिक बलात्कार ही होता
है| क्रोध, आवेश, घमंड या अतिरेक में अगर गाली का
विचार आ सकता है, तो अधिक क्रोध, अत्यधिक आवेश, बेगैरत घमंड और असहनीय अतिरेक में बलात्कार का विचार कोई अपवाद नहीं
माना जाना चाहिए|
आचरण विचारों की अभिव्यक्ति है| जिस समाज में गाली न सिर्फ विचार हों बल्कि आम
बोल-चाल की भाषा का हिस्सा हों उस समाज में बलात्कार किसी हथियार की तरह पुरुष की
कमर में लटका रहता है| जब कोई मूंछों में ताव मार के किसी अन्य
पुरुष, स्त्री, बच्चा, बच्ची, जानवर, चिड़िया, सड़क, गाड़ी, घड़ी या दरवाजे को गरिया रहा होता है, तो उस वक़्त उसके जहेन में बलात्कार किसी सिनेमा की तरह चल भी रहा
होता है|
जब एक शक्ति किसी को जबरन गुलाम बनाए
रखना चाहती है तो वो शक्ति उसे नकेल कसने या नथ पहनाने की जिद में हर हद पार करने
की ठान लेती है| इसी क्षण वो शक्ति बलात्कार को जायज
मानने लगती है|
अगर बलत्कार की घटनाओं को अख़बार में
पढ़कर आपकी रूह कांप उठती है तो सोचिये आप इसे रोकने के लिए क्या करना चाहते हैं? और कीजिये जो भी कर सकते हैं| कम से कम, फिर से कहूँगा, कम से
कम आज के बाद आपके आस पास दी जा रहीं माँ-बहन की गालियों के खिलाफ आवाज बुलंद
कीजिये| गाली ही वो विचार है जो बलात्कार
में अभिव्यक्त होता है| यदि आप गाली को समाज में जगह दे रहे
हैं, तो आप बलात्कार को भी समाज में जगह
दे रहे हैं| इसलिए प्रण लीजिये, ये माँ-बहन-बेटी की भद्दी गालियां किसी भी सूरत
में हमारे समाज में उपयोग नहीं होनी चाहिए| हंसी
मज़ाक में भी नहीं, ख्याल के ख्याल में भी नहीं| आपकी पूजा, नमाज, सिजदा सब बे माने है अगर आप गलियां
देते हैं, क्यूँ की अगर आप गलियों का उपयोग कर
रहे हैं तो आप भी बलात्कारी हैं| और
छोटे-छोटे बच्चों के साथ हो रहे इस दर्दनाक हादसों के लिए आप भी जिम्मेदार है|
मैं प्रण लेता हूँ, मैं गाली नहीं दूंगा! क्या आप भी ये प्रण लेंगे? 
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