मै चौराहा हूँ, तुम रास्ता हो
और बाकी सब मुसाफिर है|
तुम मुझतक आती हो... और
फिर गुजर जाती हो!!
तुम्हारे साथ ही
आते जाते रहते है
ये मुसाफिर भी...
रात को तुम मुझे तनहा मिलती हो...
मै निहारता रहता हूँ तुम्हारी बलखाई
घुमावडर कमर को दूर तक...
समझ पता हूँ की असल में तनहा तो तुम हो..
मेरे पास तो चार रस्ते है
हमेशा से और शायद हमेशा के लिए...
और बाकी सब मुसाफिर है|
तुम मुझतक आती हो... और
फिर गुजर जाती हो!!
तुम्हारे साथ ही
आते जाते रहते है
ये मुसाफिर भी...
रात को तुम मुझे तनहा मिलती हो...
मै निहारता रहता हूँ तुम्हारी बलखाई
घुमावडर कमर को दूर तक...
समझ पता हूँ की असल में तनहा तो तुम हो..
मेरे पास तो चार रस्ते है
हमेशा से और शायद हमेशा के लिए...
- जे. राजाराम

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