ज़मीन मेरी भी है
हकीकत ये है की मेरी जान से ज्यादा आज वो लोहा कीमती है जो मेरी जमीन के नीचे मिलता है।
जितेंद्र वर्मा
"मै न समझ हूँ, गंवार हूँ, या अनपढ़ हूँ इस बात पर हँसा जा सकता है। आपकी हंसी से मेरे आत्मविश्वास पर चोट हो भी सकती है और हो सकता है की मै अपनी बात न भी रख पाऊं। पर आज मामला ये नहीं है, मामला ये है की अब आपको मेरी बात सुननी पड़ेगी। मुझे गलत या सही साबित करने के लिए आपको मुझसे सार्थक तर्क करना पड़ेगा। अब आप मुझे चिढ़ा कर या मुझसे मुह फेर कर नहीं जा सकते। मुझे बेचारा कह देने भर से आप न्यायसंगत नहीं हो जायेंगे… मेरा वाक्चातुर्य अब आपकी पेशानी में सल खींचे या नहीं पर मेरे सवाल आपकी पेशानी का राज तिलक फीका कर सकते है। इस लिए सावधान होकर सुने…
ये ज़मीन मेरी है। इस लिए की मेरे पास सरकारी दस्तावेज नहीं है आप ये बात नहीं झुठला सकते कि मेरे सात पुस्ते यहीं दफन हैं। आपकी सरकार को जब इस जमीन की गर्भ में लोहा नहीं दिखा था तब से हम यहीं रहते हैं। ये जंगल हमसे टैक्स नहीं मांगते इस लिए कोई ऐसी रसीद नहीं है जो हमारे हक़ को आपके न्यायालय में साबित कर सके! और इस लिए ही हमारे हक़ की लड़ाई आपको बर्बर या अराजक नजर आती होगी। खैर ये समझना की हमारा हक़ क्या है आपके लिए आसान है लेकिन ये मान लेना की हम सही हैं आपके लिए बहुत मुश्किल है। कम से कम तब तक जबतक आप पर भी नाइंसाफी का खतरा न मंडराने लगे।
नाइंसाफी से आप मेरे इत्तेफ़ाक को हलके में न लें, मेरे यहाँ नाइंसाफी का मतलब बिजली, गैस, पेट्रोल के दाम बढ़ना भर नहीं है, मेरे लिए इसका मतलब है किसी चिर परिचित की हत्या हो जाना, घर जला दिया जाना या हमें शारीरिक रूप से जलील किया जाना। नहीं मेरा अनपढ़ होना इसका कारण नहीं है, हकीकत ये है की मेरी जान से ज्यादा आज वो लोहा कीमती है जो मेरी जमीन के निचे मिलता है। और ये फरेब की मै अनपढ़ हूँ इस बात से झूठा साबित हो जाता है की जिस जंगल में पाँव रखने के लिए तुम लाखों खर्च कर के तैयारी करते हो वंहा हम पूरी कुशलता से रहते हैं। या इस बात से भी की ज्यादा खा खा के तुम जिस बीमारी के इलाज़ में करोडो लगा देते हो वो बीमारी हमें होती ही नहीं है! हाँ तुम्हारे आ जाने से हमारे संसाधन खतरे में हैं और आज हम भुखमरी का शिकार हो रहे है। यहाँ भी वजह तुम ही हो, हाँ तुम पढ़े लिखे लोग.…
मामला ये भी नहीं है की आप मुझे बराबरी का दर्ज नहीं देना चाहते। क्यों की ये एक मिथ्या है की मुझे आपसे बराबरी की कोई उम्मीद है। क्यों की मै मानता ही नहीं हूँ की आप मेरे बराबर आ भी सकते हो, मेरे पास जो प्रतिभा है उसके लिए तुम्हारे स्कूलों में कोई प्रतिश्पर्धा नहीं होती, जँहा तुमने अंग्रेजी रहेन सहन सीखा है वहां जीने की कला सिखाई ही नहीं जाती क्यों की इस विद्या से मुनाफा नहीं होता।
और फिर पढ़े लिखे होने का जितना मुगालता तुम्हे है उतना मुझे नहीं हैं। तुम्हे लगता है ये जहाज, ये होटलें, ये लम्बी करें तुम्हारे लिए बनाई गयीं हैं या काम से कम दिन में एक बार तो तुम इन चीजों के नाम से आँहें तो भर ही लेते हो। सच बताऊँ तो मुझे ये चीजे अजीब लगती हैं। इनके न होने से इनके मिल जाने का लोभ होता है और मिल जाने मात्र से ये चीजे छोटी लगने लगतीं है। तुलनात्मक दृष्टि से ये चीजें हमेशा ही हमें गरीब बनाये रखतीं हैं। मेरी जमीन में ऐसा नहीं होता था.… लेकिन अब आप यहाँ आ गए हो। आपका लोभ भी आ गया है। तुमको पता है शहर में तुम पर भी अत्याचार होता था लेकिन तुमने डर के जीने का रास्ता बना लिया था.… मगर वो गुलामी के भीतर की टीस जो तुम मरते दम तक साथ ले जाते थे तुम्हारे शहर से गाँव आ जाने के बाद अब वो भड़ास हम पर फूटती है। तुम्हारे अत्याचार में वो दहक भी है जो तुम पर हुए अत्याचार ने गुलामी के दिनों में तुम्हारे अंदर भर दी थी.…
ऐसो आराम की लालच में तुमने घुटने टेक दिए थे.… और यंहा तुम अपनी गुलामी ई नुमाइश में आये हो ताकि तुम्हारे शाह तुम्हारी तरफ कुछ मेहरबान हो जाएँ!
लेकिन हमारी संस्कृति में जमीन आज भी माँ है! बस इतना कहना ही मेरे संग्राम की रणभेरी है।
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