जीवन कई संभावनावों में से एक का चुनाव करना और उसके लिए प्रयास रत हो जाने की कला है! मानव निर्मित इस सामाजिक जटिलता का दुष्परिणाम ये हो गया कि हमने चुनाव करना तो सीख लिया पर प्रयास करने में कमजोर होते गए!
वास्तव में वर्तमान कि मानव सभ्यता में इच्छा शक्ति का कमजोर होना एक स्वाभाविक घटना है| सभ्यता के इस विकास में जो अभीम्काय परिवर्तन हुए वो करीबन १५०० वर्ष पहले तक ही हुए| आज का समाज उन १५०० वर्ष पुराणी मान्यताओं को नकारने लगा है| धर्म और धर्म से जुडी जटिलताओं को तकरीबन पुरे मानव वंश ने ही कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है|
भारतीय सामाजिक संरचना पर केन्द्रित होकर विवेचना करू तो, इस देशज समाज के अति कमजोर हो जाने कर कारण इसके अति पौराणिक होने से है| करीबन ४००० वर्ष पहले लिखी गयी धार्मिक किताबों में जीवन शैली कि जो कल्पना कि गयी, वो इंसानी जाती के विलोपन तक भी सटीक बैठेंगी लेकिन उन किताबों में जो उदहारण पेश दिए गए है वो आज के वर्तमान से वास्ता नहीं रखते|
मसलन, गीता उपदेश कि बात करते है| हलाकि मै अपने ज्ञान को इस पुस्तक कि विवेचना कर पाने के लायक नहीं समझता| या यूँ कहू कि, मेरे गुरु ने मुझे आदेशात्मक शैली में कहा था कि १०० किताबें पढने के बाद १० किताबे ओशो कि पढना और फिर अगर संभाल पाओ तो गीता पढना... क्यों कि गीता स्वयं में सर्वुत्तर है| लेकिन विशव कि सारी घटनाओ का अवलोकन करने पर भी यही सत्य साबित होता है कि मानव का परम कर्त्तव्य कर्म है| और यही गीता सार भी है|
एक साधारण मानव चेनता कि विचार धरा यही समम्प्त हो जाती है कि गीता के अनुसार कर्म ही पूजा है| लेकिन मेरी अवचेतन व्याकुलता का प्रश्न ये है कि किस तरह का कर्म? माता तरेशा का? महात्मा गाँधी का? ओसामा बिन लादेन का? या फिर औरंगजेब, अकबर, अशोक एंड सिकंदर का? किस तरह का कर्म पूजा होना चाहिए?
क्या महाभारत कर्म था? क्या सिकंदर का विश्व विजय कर्म था? क्या ओसामा बिन लादेन का कर्म पूजा के योग्य मन जा सकता है?
मेरा जवाब है हाँ! ये सारे कर्म पूजा तुल्य है| लेकिन, आराधना को भौतिक विचार धरा से तौलने पर कर्म कि पाप और पुण्य में बदल जाने कि विवशता तैयार हो जाती है!
वास्तव में अपनी इच्छा सकती के बल पर अपने सपनो को साकार करने के प्रयत्न को ही कर्म कहते है| और ऐसा कोई भी कर्म, जो स्वयं कि इच्छा शक्ति से पोषित है, वो पूजा है| और यदि इन सभी महा विजयी आत्माओ ने अपने काम, अपनी विचारधारा से आवेशित हो कर किया है, तो इन सभी ने धर्म किया है| यही गीता सार है|
पर अब ये बात साधारण सपनो को जीने कि कोसिस करने वाले इन्सान को कैसे समझाई जाये? निश्चित तौर पर हमे किसी प्रकार का उदाहरण लेना होगा| यानि, किसी साधारण स्वप्नों को जीने कि भावना रखने वाले का उदाहरण... यानि कि अगर आज कोई गीता लिखने का प्रयास करे तो उसे आज कि साधारण जिंदगी का जीवंत उदाहरण लिखना पड़ेगा... मायने ये कि, फिर उसके सिद्ध्हंतो को अगर कोई २००० वर्ष बाद समझने कि कोसिस करेगा तो संभवतः वो उसकी सटीकता पर सवाल खड़े कर देगा| यही हस्र सभी धर्मो और उनके प्रतिपालन कि शाशाक्त विचार धरा के साथ हो रहा है|
पर हमारे जीवन कल कि खासियत ये है कि आज मानव सभ्यता फिर से एक बहुत बड़े परिवर्त के दौर से गुजर रही है| कुछ २००० वर्षो बाद मानव सभ्यता, वैश्विक इस्थिरता को महसूस कर पाने के काबिल हो पाई है और एक समग्र विचाधारा ने पूरे जगत को एक साथ कर्म करने के लिए बाध्य कर दिया है| यकीनन, आज कि समस्याएँ जटिल है, लेकिन समाधान आज भी वही पुराना ही है! मानव भुगूल के निकाय बदल रहे है, वैश्विक क्रांतियों ने पूरी दुनिया को एक समग्र पटल प्रदान कर दिया है! आज का दौर वो पवन समय है, जब मानव सभ्यता के भविष्य के लिए नए निकायों, और नियमावलियों का प्रतिपादन हो रहा है| विश्व समाज एक बार फिर, धर्म, कर्म और परमात्मा के समीकरण को समझने और विश्वास करने कि परिस्थिति को पोषित कर रहा है| हां! भौतिक संरचना अब, काल्पनिक या यु कहूँ कि विद्युतिक निकाय में बदल जाएगी! इ बी म, मिक्रोसोफ्ट, मचिंतोश जैसे निकाय नयी मानव विचार धरा का निर्माण करेंगे! लेकिन जिस प्रकार हम, पूरा-पाषाण युग कि सभ्यताओं को धार्मिक क्रांतियों के युग से अलग नहीं सोच पाते, उसी तरह, उन धार्मिक युगों के बिना आज के मशीनी युगों कि काल्पन कोरी ही रह जाएगी! २०५० इस. वि. में जीने वाला मानव, २०१० इस. वि. के मानव कि 'संपूर्ण इच्छा शक्ति का लोहा मानेगा और उसकी आराधना शक्ति का सूत्रपात करेगा!
क्यूँकि 'संपूर्ण इच्छा शक्ति से किया गया प्रयास जो परिणाम देता है उसे ही कर्म कहते है, और वो ही धरम है!
आदि काल कि तुलना में आज ये बात समझा पाबा ज्यादा आसान है| शाश्त्र कहते है कि मन कि वाणी मीलों तक जा कर भी उस व्यक्ति विशेष को सूचना प्रेषित कर सकती है जो आपसे किसी भी भौतिक नियमो के अधर पर नहीं जुड़ा है| यानि कि अगर आप मन से किसी को याद करो तो उस व्यक्ति तक आपकी व्याकुलता कि सूचना प्रेषित हो जाएगी, चाहे वो कितनी भी दूर हो| शायद किसी ज़माने में इस बात को सिर्फ सुन कर मान लेना ही एक मात्र विकल्प रहा होगा, लेकिंग सूचना प्रौधोगिकी के इस ज़माने में, आप प्रोग कर के भी देख सकते है, आप किसी को भी पूरे मन से याद करे.... वो आपको निर्धरिटी समय अवधि के भीतर सूचित कर देगा!!! ऐसा प्रयोग मैंने कई बार किये है| आप भी कर सकते है!
मित्रो, मानव जाती का जन्म... भौतिक रहस्यों को जान लेने और उनको ब्रम्हांड हित में उपोग करने के लिए हुआ है.... ऐसे में, युद्ध, क्लेश, असुवुधा, प्रेम और वत्साना से उपजने वाले पशु संज्ञेय भावों कि दुर्बलता को दूर करना ही मानव जाती का हित होगा| ऐसा हो पाना संभव है, शक्ति शाली विश्वाश का प्रजनन आपके अपने मस्तिष्क में संभव है|
एक सम्पूर्ण मानव योनी का जीवन जीना ही आपका धाये होना चाहिए| आपके विचार ही आपका रास्ता बनायेंगे!! आशीष!!
तत सत
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