हम धर्मो 'को' मानते है पर हम धर्मो 'की' नहीं मानते| लोग मुझे नास्तिक कहते है क्यों की मै सिर्फ भगवान को मानता हूँ|
हे ईश्वर ! मेरी मृत्यु के बाद न मेरा दहन हो, न मुझे दफनाया जाये, न मेरा ताबूत बने और न मेरा जनाजा निकले... मेरी ख्वाहिश है कि मेरे शरीर को तिरंगे में लपेट कर अन्तरिक्ष में छोड़ दिया जाये| ताकि मै किसी धर्म का न होकर सिर्फ तुझमे विसात हो जाऊं | आमीन....!
सत्य कि पराकास्ठा क्या है? और असत्य कि ध्हूर्थाता का अस्तित्व क्या है? मै खुद को सर्व ज्ञानी नहीं कह सकता क्यों कि मैंने ज्ञान कि असीमितता को भापा है और यही कारण है कि मै खुद को अज्ञानी भी नहीं कहता|
हिन्दू, इस्लाम, इसाई, बुद्ध और यहूदी, सभी धर्मो कि पवित्र किताब के कुछ पाठों को पढ़ा है| इन सभी धर्मो के समकालीन वर्षो का इतिहास भी मैंने पढ़ा है| यदि मेरी भाषा को संप्रदाय कि संप्रभुता के विरोध के आशय में न लिया जाय और मेरी सभी धर्मो के प्रति स्थापित करुणा को महसूस किया जाये तो मै यही कहना चाहता हु, कि सभी धर्मो ने मनुष्य के कर्तव्यों और अधिकारों को उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथो के समकालीन परिस्थितयों के आधार पर परिभाषित करने कोशिश की है|
एक बहुत ही विशेष टिपण्णी को यहाँ लिखना चाहूँगा "सभी धर्मो के दूत पेशे से चरवाहे थे| ईशु मसीह भेड़ चराते थे, पैगम्बर बकरी चराते थे और कृष्णा गाय चराते थे|" किसी भी धार्मिक विचार धरा के व्यक्तित्व को यह एक गजब का संजोग लगेगा, लेकिन समझने वाली बात यह है कि उस युग में जब विद्दयुत, संचार और ईंधन के व्यापर नहीं थे तब लोगो के पास व्यवसाय कि गिने चुने होते थे! ऐसी इस्थिति में यह संजोग बन जाना कोई ईस्वरिया संजोग नहीं समझना चाहिए|
इसाई शराब पीते है क्यों कि बर्फीले यूरोप में शारीर को गर्म रखने के लिए शराब कि जरुरत है| इस्लामी शराब नहीं पीते क्यों कि रेगिस्तान में शराब का सेवन शारीर कि छमता को नष्ट करता है| ये दोनों ही धर्म के लोग मंशाहारी है क्यों कि दोनों ही प्रान्तों कि जलवायु में वनस्पति शून्य है| हिन्दू धर्म में आर्य शराब और मांस का सेवन करते थे क्यों कि वो मंगोल कि जलवायु से आये थे और द्रविड़ इन दोनों का सेवन नहीं करते थे क्यों कि भारतवर्ष कि जलवायु में ३५०० ऐसी वनस्पतिया थी जो विश्व में और कही नहीं मिलती! यही कारण है कि आयुर्वेद किसी भी और चकित्सा शैली जैसे यूनानी, एलोप्ति और होमोप्ति से ज्यादा सक्षम साबित हुई|
कोई भी धर्म, राजनीति से अनभिज्ञ नहीं रहा| इस्लाम, यहूदी और इसाई समकालीन धर्म है और तीनो ही धर्म का भौगोलिक उद्गम इसराइल के आस पास कि जगह ही है| इस्लाम के मुताबिक, मूसा (मूसा अली वसल्लम), ईशु(ईसा अली वसल्लम) और मुहोम्मद सनाल्ला साला अली वसल्लम अल्लाह के नबी थे| मूसा ने तोर्रात लिखी, ईसा ने इन्ज्य्ल (बाइबिल) और मुहम्मद ने कुरान... ये तीनो धर्म गुरु ने अपनी रह अलग चुन ली क्यों कि व्यापर और राजनीती के भेद ने इन्हें अलग होने पर मजबूर कर दिया| और आज तक ये तीनो धर्म एक दुसरे से श्रेठ साबित होने कि होड़ में हिंसक होते जा रहे है| हिटलर, लादेन, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे बौनी सोच के शक्तिशाली लोग चाँद बेईमान धरम्गुरों के आधार पर महँ धर्म गुरुओं का उपयोग करके विश्व राजनीती अपना झंडा लहराना चाहते है|
बुद्ध धर्म, भारत में जन्मा लेकिन भारत में इस धर्म के लोग हमेशा से अल्पसंख्यक रहे और चीन व अन्य पूर्व-एशिआई देशो ने बुद्ध धर्म का ही अनुसरण किया| क्यों? क्यों कि, बुद्ध धर्म वैदिक काल के मनुस्मृति में लिखे वर्ण व्यवस्था का वोरोध करता था और सर्व मनुष्य सामान कि पैरवी करता था| कन्फ्युशियान्न विचारधारा के ये पीले रंग पूर्वी एशियाई इंसानों ने इस धर्म को अपनी विचार धरा के सांगत माना इस लिए इसे अपना लिया.
मौलिक तौर पर देखा जाये तो दुनिया 5 धर्मो के आधार पे बाटी हुई है (यदि अफ्रीका का छोड़ दिया जाये) अमरीका और यूरोप इसाई और यहूदी है, मध्य एशिया इस्लाम है, भारत हिन्दू है और चीन बौद्ध है| हलाकि वैश्वीकरण के इस परिवेश में ये ढांचा सही नहीं बैठता है लेकिन अगर इसमें अफ्रीका को भी जोड़ लिया जाये तो दुनिया के कुछ १८ प्रमुख धर्मो के आधार पर इस दुनिया के विस्तार और विकास के तरीको में धार्मिक स्वर को महसूस किया जा सकता है| इनमे से कोई भी धर्म मानव कल्याण के विपरीत बात नहीं करता है, भेद करो और शाशन करो कि नीति तब शुरू हुई जब धर्म विशेष के आधार पर संरचित ये दुनिया एक दुसरे कि सीमा में अपना झंडा गाड़ने कि मंशा पलने लगी| बाजारवाद ने मासूम इंसानियत के प्रतिबिम्ब को खुदरा कर दिया|

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