“यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति” पंचतंत्र का उपदेश है की “यदि व्यक्ति का जीवन और व्यक्तियों का जीवन संवारता है तभी वह व्यक्ति सच में जीवित है” क्या हमारे पुरखों का दिया ये अलौकिक ज्ञान आज कहीं भी चरितार्थ होता दिख रहा है ? अगर नहीं तो हो रहे बलात्कार और हिंसा के हम भी भागीदार है | “टी वी खबरों में , अख़बारों में , सोशल मीडिया में और आपसी लफ्फाजी में दुनिया के क्रूरतम होते जाने की निंदा कर देने भर से हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं होने वाला | इस क्रूरता के खात्मे के लिए हमें अपनी न्यूनतम और अधिकतम योगदान को तय करना होगा | और तय किये हुए कार्य को करना भी होगा | पिछले लेख ( यहाँ पढ़ें ) में मैंने न्यूनतम प्रतिबद्धता की बात की थी | उस लेख पर सवाल खड़े हुए कि कैसे मात्र गाली नहीं देने से बलात्कार रुक जायेगा ? गाली के उन्मूलन मात्र से बलात्कार कम हो जायेंगे , ऐसा नहीं है | लेकिन ये बलात्कार को रोकने के लिए सबसे मौलिक और जरुरी कदम है | सच है की एक पत्थर मार देने से तिलस्म नहीं टूटेगा लेकिन जबतक पत्थर नहीं मरेंगे तबतक तो बिलकुल नहीं टूटेगा ...
"Leader create leaders, slave create slaves!"